माधौ अविद्या हित कीन्ह। ताथैं मैं तोर नांव न लीन्ह।। टेक।। मिग्र मीन भ्रिग पतंग कुंजर, एक दोस बिनास। पंच ब्याधि असाधि इहि तन, कौंन ताकी आस।।1।। जल थल जीव जंत जहाँ-जहाँ लौं करम पासा जाइ। मोह पासि अबध बाधौ, करियै कौंण उपाइ।।2।। त्रिजुग जोनि अचेत संम भूमि, पाप पुन्य न सोच। मानिषा अवतार दुरलभ, तिहू संकुट पोच।।3।। रैदास दास उदास बन भव, जप न तप गुरु ग्यांन। भगत जन भौ हरन कहियत, ऐसै परंम निधांन।।4।।