हउ बलि बलि जाउ रमईया कारने। कारन कवन अबोल।। टेक।। हम सरि दीनु दइआलु न तुमसरि। अब पतीआरु किआ कीजै। बचनी तोर मोर मनु मानैं। जन कउ पूरनु दीजै।।1।। बहुत जनम बिछुरे थे माधउ, इहु जनमु तुम्हरे लेखे। कहि रविदास अस लगि जीवउ। चिर भइओ दरसनु देखे।।2।।