माधौ संगति सरनि तुम्हारी। जगजीवन कृश्न मुरारी।। टेक।। तुम्ह मखतूल गुलाल चत्रभुज, मैं बपुरौ जस कीरा। पीवत डाल फूल रस अंमृत, सहजि भई मति हीरा।।1।। तुम्ह चंदन मैं अरंड बापुरौ, निकटि तुम्हारी बासा। नीच बिरख थैं ऊँच भये, तेरी बास सुबास निवासा।।2।। जाति भी वोंछी जनम भी वोछा, वोछा करम हमारा। हम सरनागति रांम राइ की, कहै रैदास बिचारा।।3।।