कांन्हां हो जगजीवन मोरा। तू न बिसारीं रांम मैं जन तोरा।। टेक।। संकुट सोच पोच दिन राती, करम कठिन मेरी जाति कुभाती।।1।। हरहु बिपति भावै करहु कुभाव, चरन न छाड़ूँ जाइ सु जाव। कहै रैदास कछु देऊ अवलंबन, बेगि मिलौ जनि करहु बिलंबन।।2।।