सो कत जानै पीर पराई। जाकै अंतरि दरदु न पाई।। टेक।। सह की सार सुहागनी जानै। तजि अभिमानु सुख रलीआ मानै। तनु मनु देइ न अंतरु राखै। अवरा देखि न सुनै अभाखै।।1।। दुखी दुहागनि दुइ पख हीनी। जिनि नाह निरंतहि भगति न कीनी। पुरसलात का पंथु दुहेला। संग न साथी गवनु इकेला।।2।। दुखीआ दरदवंदु दरि आइआ। बहुतु पिआस जबाबु न पाइआ। कहि रविदास सरनि प्रभु तेरी। जिय जानहु तिउ करु गति मेरी।।3।।