तुझा देव कवलापती सरणि आयौ।
मंझा जनम संदेह भ्रम छेदि माया।। टेक।।
अति संसार अपार भौ सागरा, ता मैं जांमण मरण संदेह भारी।
कांम भ्रम क्रोध भ्रम लोभ भ्रम, मोह भ्रम, अनत भ्रम छेदि मम करसि यारी।।1।।
पंच संगी मिलि पीड़ियौ प्रांणि यौं, जाइ न न सकू बैराग भागा।
पुत्र बरग कुल बंधु ते भारज्या, भखैं दसौ दिसि रिस काल लागा।।2।।
भगति च्यंतौं तो मोहि दु:ख ब्यापै, मोह च्यंतौ तौ तेरी भगति जाई।
उभै संदेह मोहि रैंणि दिन ब्यापै, दीन दाता करौं कौंण उपाई।।3।।
चपल चेत्यौ नहीं बहुत दु:ख देखियौ, कांम बसि मोहियौ क्रम फंधा।
सकति सनबंध कीयौ, ग्यान पद हरि लीयौ, हिरदै बिस रूप तजि भयौ अंधा।।4।।
परम प्रकास अबिनास अघ मोचनां, निरखि निज रूप बिश्रांम पाया।
बंदत रैदास बैराग पद च्यंतता, जपौ जगदीस गोब्यंद राया।।5।।