जीवत मुकंदे मरत मुकंदे। ताके सेवक कउ सदा अनंदे।। टेक।। मुकंद-मुकंद जपहु संसार। बिन मुकंद तनु होइ अउहार। सोई मुकंदे मुकति का दाता। सोई मुकंदु हमरा पित माता।।1।। मुकंद-मुकंदे हमारे प्रानं। जपि मुकंद मसतकि नीसानं। सेव मुकंदे करै बैरागी। सोई मुकंद दुरबल धनु लाधी।।2।। एक मुकंदु करै उपकारू। हमरा कहा करै संसारू। मेटी जाति हूए दरबारि। तुही मुकंद जोग जुगतारि।।3।। उपजिओ गिआनु हूआ परगास। करि किरपा लीने करि दास। कहु रविदास अब त्रिसना चूकी। जपि मुकंद सेवा ताहू की।।4।।