संतौ अनिन भगति यहु नांहीं। जब लग सत रज तम पांचूँ गुण ब्यापत हैं या मांही।। टेक।। सोइ आंन अंतर करै हरि सूँ, अपमारग कूँ आंनैं। कांम क्रोध मद लोभ मोह की, पल पल पूजा ठांनैं।।1।। सति सनेह इष्ट अंगि लावै, अस्थलि अस्थलि खेलै। जो कुछ मिलै आंनि अखित ज्यूं, सुत दारा सिरि मेलै।।2।। हरिजन हरि बिन और न जांनैं, तजै आंन तन त्यागी। कहै रैदास सोई जन न्रिमल, निसदिन जो अनुरागी।।3।।