न बीचारिओ राजा राम को रसु। जिह रस अनरस बीसरि जाही।। टेक।। दूलभ जनमु पुंन फल पाइओ बिरथा जात अबिबेके। राजे इन्द्र समसरि ग्रिह आसन बिनु हरि भगति कहहु किह लेखै।।1।। जानि अजान भए हम बावर सोच असोच दिवस जाही। इन्द्री सबल निबल बिबेक बुधि परमारथ परवेस नहीं।।2।। कहीअत आन अचरीअत आन कछु समझ न परै अपर माइआ। कहि रविदास उदास दास मति परहरि कोपु करहु जीअ दइआ।।3।।