रथ कौ चतुर चलावन हारौ। खिण हाकै खिण ऊभौ राखै, नहीं आन कौ सारौ।। टेक।। जब रथ रहै सारहीं थाके, तब को रथहि चलावै। नाद बिनोद सबै ही थाकै, मन मंगल नहीं गावैं।।1।। पाँच तत कौ यहु रथ साज्यौ, अरधैं उरध निवासा। चरन कवल ल्यौ लाइ रह्यौ है, गुण गावै रैदासा।।2।।