जिह कुल साधु बैसनो होइ। बरन अबरन रंकु नहीं ईसरू बिमल बासु जानी ऐ जगि सोइ।। टेक।। ब्रहमन बैस सूद अरु ख्यत्री डोम चंडार मलेछ मन सोइ। होइ पुनीत भगवंत भजन ते आपु तारि तारे कुल दोइ।।1।। धंनि सु गाउ धंनि सो ठाउ धंनि पुनीत कुटंब सभ लोइ। जिनि पीआ सार रसु तजे आन रस होइ रस मगन डारे बिखु खोइ।।2।। पंडित सूर छत्रपति राजा भगत बराबरि अउरु न कोइ। जैसे पुरैन पात रहै जल समीप भनि रविदास जनमें जगि ओइ।।3।।