तेरा जन काहे कौं बोलै। बोलि बोलि अपनीं भगति क्यों खोलै।। टेक।। बोल बोलतां बढ़ै बियाधि, बोल अबोलैं जाई। बोलै बोल अबोल कौं पकरैं, बोल बोलै कूँ खाई।।1।। बोलै बोल मांनि परि बोलैं, बोलै बेद बड़ाई। उर में धरि धरि जब ही बोलै, तब हीं मूल गँवाई।।2।। बोलि बोलि औरहि समझावै, तब लग समझि नहीं रे भाई। बोलि बोलि समझि जब बूझी, तब काल सहित सब खाई।।3।। बोलै गुर अरु बोलै चेला, बोल्या बोल की परमिति जाई। कहै रैदास थकित भयौ जब, तब हीं परंमनिधि पाई।।4।।