"माधौ अविद्या हित कीन्ह -रैदास": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "१" to "1")
छो (Text replace - "४" to "4")
 
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 37: पंक्ति 37:
पंच ब्याधि असाधि इहि तन, कौंन ताकी आस।।1।।
पंच ब्याधि असाधि इहि तन, कौंन ताकी आस।।1।।
जल थल जीव जंत जहाँ-जहाँ लौं करम पासा जाइ।
जल थल जीव जंत जहाँ-जहाँ लौं करम पासा जाइ।
मोह पासि अबध बाधौ, करियै कौंण उपाइ।।२।।
मोह पासि अबध बाधौ, करियै कौंण उपाइ।।2।।
त्रिजुग जोनि अचेत संम भूमि, पाप पुन्य न सोच।
त्रिजुग जोनि अचेत संम भूमि, पाप पुन्य न सोच।
मानिषा अवतार दुरलभ, तिहू संकुट पोच।।३।।
मानिषा अवतार दुरलभ, तिहू संकुट पोच।।3।।
रैदास दास उदास बन भव, जप न तप गुरु ग्यांन।
रैदास दास उदास बन भव, जप न तप गुरु ग्यांन।
भगत जन भौ हरन कहियत, ऐसै परंम निधांन।।४।।
भगत जन भौ हरन कहियत, ऐसै परंम निधांन।।4।।
</poem>
</poem>
{{Poemclose}}
{{Poemclose}}

10:45, 1 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
माधौ अविद्या हित कीन्ह -रैदास
रैदास
रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

माधौ अविद्या हित कीन्ह।
ताथैं मैं तोर नांव न लीन्ह।। टेक।।
मिग्र मीन भ्रिग पतंग कुंजर, एक दोस बिनास।
पंच ब्याधि असाधि इहि तन, कौंन ताकी आस।।1।।
जल थल जीव जंत जहाँ-जहाँ लौं करम पासा जाइ।
मोह पासि अबध बाधौ, करियै कौंण उपाइ।।2।।
त्रिजुग जोनि अचेत संम भूमि, पाप पुन्य न सोच।
मानिषा अवतार दुरलभ, तिहू संकुट पोच।।3।।
रैदास दास उदास बन भव, जप न तप गुरु ग्यांन।
भगत जन भौ हरन कहियत, ऐसै परंम निधांन।।4।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख