"प्रीति सधारन आव -रैदास": अवतरणों में अंतर
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चक को ध्यान दधिसुत कौं होत है, त्यूँ तुम्ह थैं मैं न्यारी।।1।। | चक को ध्यान दधिसुत कौं होत है, त्यूँ तुम्ह थैं मैं न्यारी।।1।। | ||
भोर भयौ मोहिं इकटग जोवत, तलपत रजनी जाइ। | भोर भयौ मोहिं इकटग जोवत, तलपत रजनी जाइ। | ||
पिय बिन सेज क्यूँ सुख सोऊँ, बिरह बिथा तनि | पिय बिन सेज क्यूँ सुख सोऊँ, बिरह बिथा तनि माइ।।2।। | ||
दुहागनि सुहागनि कीजै, अपनैं अंग लगाई। | दुहागनि सुहागनि कीजै, अपनैं अंग लगाई। | ||
कहै रैदास प्रभु तुम्हरै बिछोहै, येक पल जुग भरि जाइ।।३।। | कहै रैदास प्रभु तुम्हरै बिछोहै, येक पल जुग भरि जाइ।।३।। |
10:03, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
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प्रीति सधारन आव। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |