"पांडे कैसी पूज रची रे -रैदास": अवतरणों में अंतर

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पंच तत जिनि कीया पसारा, सो यौ ही किधौं और रे।।1।।
पंच तत जिनि कीया पसारा, सो यौ ही किधौं और रे।।1।।
तू ज कहत है यौ ही करता, या कौं मनिख करै रे।
तू ज कहत है यौ ही करता, या कौं मनिख करै रे।
तारण सकति सहीजे यामैं, तौ आपण क्यूँ न तिरै रे।।२।।
तारण सकति सहीजे यामैं, तौ आपण क्यूँ न तिरै रे।।2।।
अहीं भरोसै सब जग बूझा, सुंणि पंडित की बात रे।।
अहीं भरोसै सब जग बूझा, सुंणि पंडित की बात रे।।
याकै दरसि कौंण गुण छूटा, सब जग आया जात रे।।३।।
याकै दरसि कौंण गुण छूटा, सब जग आया जात रे।।३।।

10:03, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण

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पांडे कैसी पूज रची रे -रैदास
रैदास
रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

पांडे कैसी पूज रची रे।
सति बोलै सोई सतिबादी, झूठी बात बची रे।। टेक।।
जो अबिनासी सबका करता, ब्यापि रह्यौ सब ठौर रे।
पंच तत जिनि कीया पसारा, सो यौ ही किधौं और रे।।1।।
तू ज कहत है यौ ही करता, या कौं मनिख करै रे।
तारण सकति सहीजे यामैं, तौ आपण क्यूँ न तिरै रे।।2।।
अहीं भरोसै सब जग बूझा, सुंणि पंडित की बात रे।।
याकै दरसि कौंण गुण छूटा, सब जग आया जात रे।।३।।
याकी सेव सूल नहीं भाजै, कटै न संसै पास रे।
सौचि बिचारि देखिया मूरति, यौं छाड़ौ रैदास रे।।४।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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