"नरहरि चंचल मति मोरी -रैदास": अवतरणों में अंतर

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गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपगार न मांनां।।2।।
गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपगार न मांनां।।2।।
मैं तैं तोरि मोरी असमझ सों, कैसे करि निसतारा।
मैं तैं तोरि मोरी असमझ सों, कैसे करि निसतारा।
कहै रैदास कृश्न करुणांमैं, जै जै जगत अधारा।।3।।  
कहै रैदास कृश्न करुणांमैं, जै जै जगत् अधारा।।3।।  
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नरहरि चंचल मति मोरी -रैदास
रैदास
रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

नरहरि चंचल मति मोरी।
कैसैं भगति करौ रांम तोरी।। टेक।।
तू कोहि देखै हूँ तोहि देखैं, प्रीती परस्पर होई।
तू मोहि देखै हौं तोहि न देखौं, इहि मति सब बुधि खोई।।1।।
सब घट अंतरि रमसि निरंतरि, मैं देखत ही नहीं जांनां।
गुन सब तोर मोर सब औगुन, क्रित उपगार न मांनां।।2।।
मैं तैं तोरि मोरी असमझ सों, कैसे करि निसतारा।
कहै रैदास कृश्न करुणांमैं, जै जै जगत् अधारा।।3।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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