एकादशोऽध्याय प्रसंग-
इस अध्याय में <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के प्रार्थना करने पर भगवान् ने उनको अपने विश्व रूप के दर्शन करवाये हैं । अध्याय के अधिकांश में केवल विश्व रूप और उनके स्तवन का ही प्रकरण है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'विश्व रूप दर्शन योग' रखा गया है ।
प्रसंग-
ग्यारहवें अध्याय के आरम्भ में पहले चार श्लोकों में भगवान् की और उनके उपदेश की प्रशंसा करते हुए अर्जुन उनसे विश्व रूप का दर्शन कराने के लिय प्रार्थना करते हैं-
अर्जुन उवाच-
मदनुग्रहाय परमं गुह्रामध्यात्मसंज्ञितम् ।
यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ।।1।।
|