"मैं का जांनूं देव मैं का जांनू -रैदास": अवतरणों में अंतर
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मन माया के हाथि बिकांनूं।। टेक।। | मन माया के हाथि बिकांनूं।। टेक।। | ||
चंचल मनवां चहु दिसि धावै; जिभ्या इंद्री हाथि न आवै। | चंचल मनवां चहु दिसि धावै; जिभ्या इंद्री हाथि न आवै। | ||
तुम तौ आहि | तुम तौ आहि जगत् गुर स्वांमीं, हम कहियत कलिजुग के कांमी।।1।। | ||
लोक बेद मेरे सुकृत बढ़ाई, लोक लीक मोपैं तजी न जाई। | लोक बेद मेरे सुकृत बढ़ाई, लोक लीक मोपैं तजी न जाई। | ||
इन मिलि मेरौ मन जु बिगार्यौ, दिन दिन हरि जी सूँ अंतर | इन मिलि मेरौ मन जु बिगार्यौ, दिन दिन हरि जी सूँ अंतर पार्यौ।।2।। | ||
सनक सनंदन महा मुनि ग्यांनी, सुख नारद ब्यास इहै बखांनीं। | सनक सनंदन महा मुनि ग्यांनी, सुख नारद ब्यास इहै बखांनीं। | ||
गावत निगम उमांपति स्वांमीं, सेस सहंस मुख कीरति | गावत निगम उमांपति स्वांमीं, सेस सहंस मुख कीरति गांमी।।3।। | ||
जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ | जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ दु:ख की रासी, जौ न पतियाइ साध है साखी। | ||
जमदूतनि बहु बिधि करि मार्यौ, तऊ निलज अजहूँ नहीं | जमदूतनि बहु बिधि करि मार्यौ, तऊ निलज अजहूँ नहीं हार्यौ।।4।। | ||
हरि पद बिमुख आस नहीं छूटै, ताथैं त्रिसनां दिन दिन लूटै। | हरि पद बिमुख आस नहीं छूटै, ताथैं त्रिसनां दिन दिन लूटै। | ||
बहु बिधि करम लीयैं भटकावै, तुमहि दोस हरि कौं न | बहु बिधि करम लीयैं भटकावै, तुमहि दोस हरि कौं न लगावै।।5।। | ||
केवल रांम नांम नहीं लीया। संतुति विषै स्वादि चित दीया। | केवल रांम नांम नहीं लीया। संतुति विषै स्वादि चित दीया। | ||
कहै रैदास कहाँ लग कहिये, बिन जग नाथ सदा सुख | कहै रैदास कहाँ लग कहिये, बिन जग नाथ सदा सुख सहियै।।6।। | ||
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13:50, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
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मैं का जांनूं देव मैं का जांनू। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |