"नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर -रैदास": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
प्रीति चौधरी (वार्ता | योगदान) ('{{पुनरीक्षण}} {| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "४" to "4") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 34: | पंक्ति 34: | ||
नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर। | नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर। | ||
जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।। | जाकै सुर नर संत सरन अभिअंतर।। टेक।। | ||
जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति | जहाँ जहाँ गयौ, तहाँ जनम काछै, तृबिधि ताप तृ भुवनपति पाछै।।1।। | ||
भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै | भये अति छीन खेद माया बस, जस तिन ताप पर नगरि हतै तस।।2।। | ||
द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या | द्वारैं न दसा बिकट बिष कारंन, भूलि पर्यौ मन या बिष्या बन।।3।। | ||
कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब | कहै रैदास सुमिरौ बड़ राजा, काटि दिये जन साहिब लाजा।।4।। | ||
</poem> | </poem> | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} |
10:44, 1 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
| ||||||||||||||||
|
नहीं बिश्रांम लहूँ धरनींधर। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |