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सुचि कवन परिहोइये, कुंजर गति ब्यौहार।।4।।
सुचि कवन परिहोइये, कुंजर गति ब्यौहार।।4।।
रवि प्रकास रजनी जथा, गत दीसै संसार पारस मनि तांबौ छिवै।
रवि प्रकास रजनी जथा, गत दीसै संसार पारस मनि तांबौ छिवै।
कनक होत नहीं बार, धन जोबन प्रभु नां मिलै।।५।।
कनक होत नहीं बार, धन जोबन प्रभु नां मिलै।।5।।
ना मिलै कुल करनी आचार।
ना मिलै कुल करनी आचार।
एकै अनेक बिगाइया, ताकौं जाणैं सब संसार।।६।।
एकै अनेक बिगाइया, ताकौं जाणैं सब संसार।।6।।
अनेक जतन करि टारिये, टारी टरै न भ्रम पास।
अनेक जतन करि टारिये, टारी टरै न भ्रम पास।
प्रेम भगति नहीं उपजै, ताथैं रैदास उदास।।७।।
प्रेम भगति नहीं उपजै, ताथैं रैदास उदास।।7।।


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मरम कैसैं पाइबौ रे -रैदास
रैदास
रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

मरम कैसैं पाइबौ रे।
पंडित कोई न कहै समझाइ, जाथैं मरौ आवागवन बिलाइ।। टेक।।
बहु बिधि धरम निरूपिये, करता दीसै सब लोई।
जाहि धरम भ्रम छूटिये, ताहि न चीन्हैं कोई।।1।।
अक्रम क्रम बिचारिये, सुण संक्या बेद पुरांन।
बाकै हृदै भै भ्रम, हरि बिन कौंन हरै अभिमांन।।2।।
सतजुग सत त्रेता तप, द्वापरि पूजा आचार।
तीन्यूं जुग तीन्यूं दिढी, कलि केवल नांव अधार।।3।।
बाहरि अंग पखालिये, घट भीतरि बिबधि बिकार।
सुचि कवन परिहोइये, कुंजर गति ब्यौहार।।4।।
रवि प्रकास रजनी जथा, गत दीसै संसार पारस मनि तांबौ छिवै।
कनक होत नहीं बार, धन जोबन प्रभु नां मिलै।।5।।
ना मिलै कुल करनी आचार।
एकै अनेक बिगाइया, ताकौं जाणैं सब संसार।।6।।
अनेक जतन करि टारिये, टारी टरै न भ्रम पास।
प्रेम भगति नहीं उपजै, ताथैं रैदास उदास।।7।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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