"मन मेरे सोई सरूप बिचार -रैदास": अवतरणों में अंतर
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आदि अंत अनंत परंम पद, संसै सकल निवारं।। टेक।। | आदि अंत अनंत परंम पद, संसै सकल निवारं।। टेक।। | ||
जस हरि कहियत तस तौ नहीं, है अस जस कछू तैसा। | जस हरि कहियत तस तौ नहीं, है अस जस कछू तैसा। | ||
जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज | जानत जानत जानि रह्यौ मन, ताकौ मरम कहौ निज कैसा।।1।। | ||
कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई। | कहियत आन अनुभवत आन, रस मिल्या न बेगर होई। | ||
बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।२।। | बाहरि भीतरि गुप्त प्रगट, घट घट प्रति और न कोई।।२।। |
09:48, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण
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मन मेरे सोई सरूप बिचार। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |