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मूरति मांहि बसै परमेसुर, तौ पांणी मांहि तिरै रे।।1।।
मूरति मांहि बसै परमेसुर, तौ पांणी मांहि तिरै रे।।1।।
त्रिबिधि संसार कवन बिधि तिरिबौ, जे दिढ नांव न गहै रे।
त्रिबिधि संसार कवन बिधि तिरिबौ, जे दिढ नांव न गहै रे।
नाव छाड़ि जे डूंगै बैठे, तौ दूणां दूख सहै रे।।२।।
नाव छाड़ि जे डूंगै बैठे, तौ दूणां दूख सहै रे।।2।।
गुरु कौं सबद अरु सुरति कुदाली, खोदत कोई लहै रे।
गुरु कौं सबद अरु सुरति कुदाली, खोदत कोई लहै रे।
रांम काहू कै बाटै न आयौ, सोनैं कूल बहै रे।।३।।
रांम काहू कै बाटै न आयौ, सोनैं कूल बहै रे।।३।।

10:03, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण

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बपुरौ सति रैदास कहै -रैदास
रैदास
रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

बपुरौ सति रैदास कहै।
ग्यान बिचारि नांइ चित राखै, हरि कै सरनि रहै रे।। टेक।।
पाती तोड़ै पूज रचावै, तारण तिरण कहै रे।
मूरति मांहि बसै परमेसुर, तौ पांणी मांहि तिरै रे।।1।।
त्रिबिधि संसार कवन बिधि तिरिबौ, जे दिढ नांव न गहै रे।
नाव छाड़ि जे डूंगै बैठे, तौ दूणां दूख सहै रे।।2।।
गुरु कौं सबद अरु सुरति कुदाली, खोदत कोई लहै रे।
रांम काहू कै बाटै न आयौ, सोनैं कूल बहै रे।।३।।
झूठी माया जग डहकाया, तो तनि ताप दहै रे।
कहै रैदास रांम जपि रसनां, माया काहू कै संगि न न रहै रे।।४।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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