"मैं का जांनूं देव मैं का जांनू -रैदास": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "६" to "6")
छो (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ")
पंक्ति 40: पंक्ति 40:
सनक सनंदन महा मुनि ग्यांनी, सुख नारद ब्यास इहै बखांनीं।
सनक सनंदन महा मुनि ग्यांनी, सुख नारद ब्यास इहै बखांनीं।
गावत निगम उमांपति स्वांमीं, सेस सहंस मुख कीरति गांमी।।3।।
गावत निगम उमांपति स्वांमीं, सेस सहंस मुख कीरति गांमी।।3।।
जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ दुख की रासी, जौ न पतियाइ साध है साखी।
जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ दु:ख की रासी, जौ न पतियाइ साध है साखी।
जमदूतनि बहु बिधि करि मार्यौ, तऊ निलज अजहूँ नहीं हार्यौ।।4।।
जमदूतनि बहु बिधि करि मार्यौ, तऊ निलज अजहूँ नहीं हार्यौ।।4।।
हरि पद बिमुख आस नहीं छूटै, ताथैं त्रिसनां दिन दिन लूटै।
हरि पद बिमुख आस नहीं छूटै, ताथैं त्रिसनां दिन दिन लूटै।

14:00, 2 जून 2017 का अवतरण

इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
मैं का जांनूं देव मैं का जांनू -रैदास
रैदास
रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

मैं का जांनूं देव मैं का जांनू।
मन माया के हाथि बिकांनूं।। टेक।।
चंचल मनवां चहु दिसि धावै; जिभ्या इंद्री हाथि न आवै।
तुम तौ आहि जगत गुर स्वांमीं, हम कहियत कलिजुग के कांमी।।1।।
लोक बेद मेरे सुकृत बढ़ाई, लोक लीक मोपैं तजी न जाई।
इन मिलि मेरौ मन जु बिगार्यौ, दिन दिन हरि जी सूँ अंतर पार्यौ।।2।।
सनक सनंदन महा मुनि ग्यांनी, सुख नारद ब्यास इहै बखांनीं।
गावत निगम उमांपति स्वांमीं, सेस सहंस मुख कीरति गांमी।।3।।
जहाँ जहाँ जांऊँ तहाँ दु:ख की रासी, जौ न पतियाइ साध है साखी।
जमदूतनि बहु बिधि करि मार्यौ, तऊ निलज अजहूँ नहीं हार्यौ।।4।।
हरि पद बिमुख आस नहीं छूटै, ताथैं त्रिसनां दिन दिन लूटै।
बहु बिधि करम लीयैं भटकावै, तुमहि दोस हरि कौं न लगावै।।5।।
केवल रांम नांम नहीं लीया। संतुति विषै स्वादि चित दीया।
कहै रैदास कहाँ लग कहिये, बिन जग नाथ सदा सुख सहियै।।6।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख