"क्या तू सोवै जणिं दिवांनां -रैदास": अवतरणों में अंतर

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जिनि जीव दिया सो रिजकअ बड़ावै, घट घट भीतरि रहट चलावै।
जिनि जीव दिया सो रिजकअ बड़ावै, घट घट भीतरि रहट चलावै।
करि बंदिगी छाड़ि मैं मेरा, हिरदै का रांम संभालि सवेरा।।1।।
करि बंदिगी छाड़ि मैं मेरा, हिरदै का रांम संभालि सवेरा।।1।।
जो दिन आवै सौ दुख मैं जाई, कीजै कूच रह्यां सच नांहीं।
जो दिन आवै सौ दु:ख मैं जाई, कीजै कूच रह्यां सच नांहीं।
संग चल्या है हम भी चलनां, दूरि गवन सिर ऊपरि मरनां।।2।।
संग चल्या है हम भी चलनां, दूरि गवन सिर ऊपरि मरनां।।2।।
जो कुछ बोया लुनियें सोई, ता मैं फेर फार कछू न होई।
जो कुछ बोया लुनियें सोई, ता मैं फेर फार कछू न होई।

14:09, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

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क्या तू सोवै जणिं दिवांनां -रैदास
रैदास
रैदास
कवि रैदास
जन्म 1398 ई. (लगभग)
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1518 ई.
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रैदास की रचनाएँ

क्या तू सोवै जणिं दिवांनां।
झूठा जीवनां सच करि जांनां।। टेक।।
जिनि जीव दिया सो रिजकअ बड़ावै, घट घट भीतरि रहट चलावै।
करि बंदिगी छाड़ि मैं मेरा, हिरदै का रांम संभालि सवेरा।।1।।
जो दिन आवै सौ दु:ख मैं जाई, कीजै कूच रह्यां सच नांहीं।
संग चल्या है हम भी चलनां, दूरि गवन सिर ऊपरि मरनां।।2।।
जो कुछ बोया लुनियें सोई, ता मैं फेर फार कछू न होई।
छाडेअं कूर भजै हरि चरनां, ताका मिटै जनम अरु मरनां।।3।।
आगैं पंथ खरा है झीनां, खाडै धार जिसा है पैंनां।
तिस ऊपरि मारग है तेरा, पंथी पंथ संवारि सवेरा।।4।।
क्या तैं खरच्या क्या तैं खाया, चल दरहाल दीवांनि बुलाया।
साहिब तोपैं लेखा लेसी, भीड़ पड़े तू भरि भरिदेसी।।5।।
जनम सिरांनां कीया पसारा, सांझ पड़ी चहु दिसि अंधियारा।
कहै रैदासा अग्यांन दिवांनां, अजहूँ न चेतै दुनी फंध खांनां।।6।।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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