मरम कैसैं पाइबौ रे।
पंडित कोई न कहै समझाइ, जाथैं मरौ आवागवन बिलाइ।। टेक।।
बहु बिधि धरम निरूपिये, करता दीसै सब लोई।
जाहि धरम भ्रम छूटिये, ताहि न चीन्हैं कोई।।1।।
अक्रम क्रम बिचारिये, सुण संक्या बेद पुरांन।
बाकै हृदै भै भ्रम, हरि बिन कौंन हरै अभिमांन।।२।।
सतजुग सत त्रेता तप, द्वापरि पूजा आचार।
तीन्यूं जुग तीन्यूं दिढी, कलि केवल नांव अधार।।३।।
बाहरि अंग पखालिये, घट भीतरि बिबधि बिकार।
सुचि कवन परिहोइये, कुंजर गति ब्यौहार।।४।।
रवि प्रकास रजनी जथा, गत दीसै संसार पारस मनि तांबौ छिवै।
कनक होत नहीं बार, धन जोबन प्रभु नां मिलै।।५।।
ना मिलै कुल करनी आचार।
एकै अनेक बिगाइया, ताकौं जाणैं सब संसार।।६।।
अनेक जतन करि टारिये, टारी टरै न भ्रम पास।
प्रेम भगति नहीं उपजै, ताथैं रैदास उदास।।७।।