भेष लियो पै भेद न जान्यो। अमृत लेई विषै सो मान्यो।। टेक।। काम क्रोध में जनम गँवायो, साधु सँगति मिलि राम न गायो।।1।। तिलक दियो पै तपनि न जाई, माला पहिरे घनेरी लाई।।2।। कह रैदास परम जो पाऊँ, देव निरंजन सत कर ध्याऊँ।।3।।