गीता 18:20

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

गीता अध्याय-18 श्लोक-20 / Gita Chapter-18 Verse-20

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में जो ज्ञान, कर्म और कर्ता के सात्त्विक, राजस और तामस भेद क्रमश: बतलाने की प्रस्तावना की थी, उसके अनुसार पहले सात्त्विक ज्ञान के लक्षण बतलाते हैं-


सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते ।
अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्विकम् ।।20।।



जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक्-पृथक् सब भूतों में एक अविनाशी परमात्म-भाव को विभागरहित समभाव से स्थित देखता है, उस ज्ञान को तो तू सात्त्विक जान ।।20।।

That by which man perceives one imperishable divine existence as undivided and equally present in all individual beings, know that knowledge to be goodness (Sattvika).(20)


येन = जिस ज्ञान से (मनुष्य) ; विभक्तेषु = पृथक् पृथक् ; सर्वभूतेषु = सब भूतों में ; एकम् = एक ; अव्ययम् = अविनाशी ; भावम् = परमात्माभाव को ; अविभक्तम् = विभागरहित (समभाव से स्थित) ; ईक्षते = देखता है ; तत् = उस ; ज्ञानम् = ज्ञानको (तो तूं) ; सात्त्विकम् = सात्त्विक ; विद्धि = जान ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख