हे पार्थ[1] ! जिस अव्यभिचारिणी धारण शक्ति से मनुष्य ध्यान योग के द्वारा मन, प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओं को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है ।।33।।
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The unwavering firmness by which man controls through the Yoga of meditation the functions of the mind, the vital airs and the senses—that firmness, Arjuna, is Goodness (Sattvika). (33)
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