हे पृथापुत्र[1] ! फल की इच्छा वाला मनुष्य जिस धारणशक्ति के द्वारा अत्यन्त आसक्ति से धर्म, अर्थ और कामों को धारण करता है, वह धारणशक्ति राजसी है ॥34॥
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And that determination by which one holds fast to fruitive result in religion, economic development and sense gratification is of the nature of passion, O Arjuna.
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