जो कर्ता संगरहित, अहंकार के वचन न बोलने धैर्य और उत्साह से युक्त तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष-शोकादि विकारों से रहित है, वह सात्त्विक कहा जाता है ।।26।।
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Free from attachment, unegoistic, endowed with firmness and vigour and unswayed by success and failure— such a doer is said to be as goodness (Sattvika). (26)
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