"गीता 18:41": अवतरणों में अंतर
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अब संक्षेप में नियत कर्मों को स्वरूप, त्याग के नाम से वर्णित कर्मयोग में भक्ति का सहयोग और उसका फल परम सिद्धि की प्राप्ति बतलाने के लिये पुन: उसी त्याग रूप कर्मयोग का प्रकरण आरम्भ करते हुए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के स्वाभाविक नियत कर्म बतलाने की प्रस्तावना करते हैं- | अब संक्षेप में नियत कर्मों को स्वरूप, त्याग के नाम से वर्णित कर्मयोग में [[भक्ति]] का सहयोग और उसका फल परम सिद्धि की प्राप्ति बतलाने के लिये पुन: उसी त्याग रूप कर्मयोग का प्रकरण आरम्भ करते हुए [[ब्राह्मण]], [[क्षत्रिय]], [[वैश्य]] और [[शूद्र|शूद्रों]] के स्वाभाविक नियत कर्म बतलाने की प्रस्तावना करते हैं- | ||
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हे < | हे परंतप<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों के द्वारा विभक्त किये गये हैं ।।41।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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06:08, 7 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-41 / Gita Chapter-18 Verse-41
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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