"गीता 18:77": अवतरणों में अंतर
छो (1 अवतरण) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " महान " to " महान् ") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 8: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
इस प्रकार गीताशास्त्र की स्मृति का | इस प्रकार गीताशास्त्र की स्मृति का महत्त्व बतलाकर अब [[संजय]]<ref>संजय [[धृतराष्ट्र]] की राजसभा का सम्मानित सदस्य था। जाति से वह बुनकर था। वह विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध था। वह राजा को समय-समय पर सलाह देता रहता था।</ref> अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए भगवान् के विराट् स्वरूप की स्मृति का महत्त्व दिखलाते हैं। | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 21: | ||
|- | |- | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
हे राजन् ! श्रीहरि के उस अत्यन्त विलक्षण रूप को पुन:-पुन: स्मरण करके मेरे चित्त में | हे राजन् ! श्रीहरि के उस अत्यन्त विलक्षण रूप को पुन:-पुन: स्मरण करके मेरे चित्त में महान् आश्चर्य होता है और मैं बार-बार हर्षित हो रहा हूँ ।।77।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 31: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
राजन् = हे राजन्; हरे: = श्रीहरि के; तत् = उस; अति = अति; अद्भुतम् = अद्भुत; रूपम् = रूप को; संस्मृत्य = पुन: पुन: स्मरण करके; मे = मेरे; | राजन् = हे राजन्; हरे: = श्रीहरि के; तत् = उस; अति = अति; अद्भुतम् = अद्भुत; रूपम् = रूप को; संस्मृत्य = पुन: पुन: स्मरण करके; मे = मेरे; महान् = महान; विस्मय: = आश्चर्य; पुन: पुन: = बारम्बार; हृष्यामि = हर्षित होता हूं | ||
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 55: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
{{ | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | |||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
{{ | {{महाभारत}} | ||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> |
14:10, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-77 / Gita Chapter-18 Verse-77
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
||||