"गीता 18:12": अवतरणों में अंतर

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'''प्रसंग-'''
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कर्मों का फल भी किसी-न किसी जन्म में सबको अवश्य भोगना पड़ता है; इसलिये केवल कर्म फल के त्याग से मनुष्य त्यागी यानी 'कर्मबन्धन रहित ' कैसे हो सकता है ? इस शंका की निवृति के लिये कहते हैं-
कर्मों का फल भी किसी-न किसी जन्म में सबको अवश्य भोगना पड़ता है; इसलिये केवल कर्म फल के त्याग से मनुष्य त्यागी यानी 'कर्मबन्धन रहित' कैसे हो सकता है? इस शंका की निवृति के लिये कहते हैं-
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'''अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मण: फलम् ।'''<br />
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'''भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु संन्यासिनां क्वचित् ।।12।।'''
'''भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु सन्न्यासिनां क्वचित् ।।12।।'''
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कर्म फल का त्याग न करने वाले मनुष्यों के कर्मों का तो अच्छा, बुरा और मिला हुआ – ऐसे तीन प्रकार का फल मरने के पश्चात अवश्य होता है; किन्तु कर्मफल का त्याग कर देने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल किसी काल में भी नहीं होता ।।12।।
कर्म फल का त्याग न करने वाले मनुष्यों के कर्मों का तो अच्छा, बुरा और मिला हुआ – ऐसे तीन प्रकार का फल मरने के पश्चात् अवश्य होता है; किन्तु कर्मफल का त्याग कर देने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल किसी काल में भी नहीं होता ।।12।।


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अत्यागिनाम् = सकामी पुरुषों के ; कर्मण: = कर्मका (ही) ; इष्टम् = अच्छा ; अनिष्टम् = बुरा ; च = और ; मिश्रम् = मिला हुआ ; (इति) = ऐसे ; त्रिविधम् = तीन प्रकार का ; फलम् = फल ; प्रेत्य = मरने का पश्र्चात् (भी) ; भवति = होता है ; तु =और ; संन्यासिनाम् = त्यागी पुरुषों के (कर्मों का फल) ; कचित् = किसी काल में भी ; न = नहीं होता ;
अत्यागिनाम् = सकामी पुरुषों के ; कर्मण: = कर्मका (ही) ; इष्टम् = अच्छा ; अनिष्टम् = बुरा ; च = और ; मिश्रम् = मिला हुआ ; (इति) = ऐसे ; त्रिविधम् = तीन प्रकार का ; फलम् = फल ; प्रेत्य = मरने का पश्र्चात् (भी) ; भवति = होता है ; तु =और ; सन्न्यासिनाम् = त्यागी पुरुषों के (कर्मों का फल) ; कचित् = किसी काल में भी ; न = नहीं होता ;
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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07:46, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-18 श्लोक-12 / Gita Chapter-18 Verse-12

प्रसंग-


कर्मों का फल भी किसी-न किसी जन्म में सबको अवश्य भोगना पड़ता है; इसलिये केवल कर्म फल के त्याग से मनुष्य त्यागी यानी 'कर्मबन्धन रहित' कैसे हो सकता है? इस शंका की निवृति के लिये कहते हैं-


अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मण: फलम् ।
भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु सन्न्यासिनां क्वचित् ।।12।।



कर्म फल का त्याग न करने वाले मनुष्यों के कर्मों का तो अच्छा, बुरा और मिला हुआ – ऐसे तीन प्रकार का फल मरने के पश्चात् अवश्य होता है; किन्तु कर्मफल का त्याग कर देने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल किसी काल में भी नहीं होता ।।12।।

Welcome, unwelcome and mixed- threefold, indeed, is the fruit that accrues here after from the actions of the unrenouncing. But there is none ever for those who have renounced. (12)


अत्यागिनाम् = सकामी पुरुषों के ; कर्मण: = कर्मका (ही) ; इष्टम् = अच्छा ; अनिष्टम् = बुरा ; च = और ; मिश्रम् = मिला हुआ ; (इति) = ऐसे ; त्रिविधम् = तीन प्रकार का ; फलम् = फल ; प्रेत्य = मरने का पश्र्चात् (भी) ; भवति = होता है ; तु =और ; सन्न्यासिनाम् = त्यागी पुरुषों के (कर्मों का फल) ; कचित् = किसी काल में भी ; न = नहीं होता ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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