"गीता 18:16": अवतरणों में अंतर
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इस प्रकार सांख्ययोग के सिद्धान्त से समस्त कर्मों की सिद्धि के अधिष्ठानादि पाँच कारणों का निरूपण करके अब, वास्तव में आत्मा का कर्मों से कोई संबंध नहीं है, आत्मा सर्वथा शुद्ध निर्विकार और अकर्ता है- यह बात समझाने के लिये पहले आत्मा को कर्ता मानने वाले की निन्दा करते हैं- | इस प्रकार सांख्ययोग के सिद्धान्त से समस्त कर्मों की सिद्धि के अधिष्ठानादि पाँच कारणों का निरूपण करके अब, वास्तव में [[आत्मा]] का कर्मों से कोई संबंध नहीं है, आत्मा सर्वथा शुद्ध निर्विकार और अकर्ता है- यह बात समझाने के लिये पहले आत्मा को कर्ता मानने वाले की निन्दा करते हैं- | ||
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परन्तु ऐसा होने पर भी जो मनुष्य अशुद्ध बुद्धि होने के कारण उस विषय में यानी कर्मों के होने में केवल- शुद्ध स्वरूप आत्मा को कर्ता समझता है, वह मलिन बुद्धि वाला अज्ञानी यथार्थ नहीं समझता ।।16।। | परन्तु ऐसा होने पर भी जो मनुष्य अशुद्ध बुद्धि होने के कारण उस विषय में यानी कर्मों के होने में केवल- शुद्ध स्वरूप [[आत्मा]] को कर्ता समझता है, वह मलिन बुद्धि वाला अज्ञानी यथार्थ नहीं समझता ।।16।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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13:48, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-16 / Gita Chapter-18 Verse-16
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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