"गीता 18:38": अवतरणों में अंतर
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जो सुख विषय और इन्द्रियों के संयोग से होता है, वह पहले भोगकाल में अमृत के तुल्य प्रतीत होने पर भी परिणाम में विष के तुल्य है; इसलिये वह सुख राजस कहा गया है ।।38।। | जो सुख विषय और [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] के संयोग से होता है, वह पहले भोगकाल में अमृत के तुल्य प्रतीत होने पर भी परिणाम में विष के तुल्य है; इसलिये वह सुख राजस कहा गया है ।।38।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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05:57, 7 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-38 / Gita Chapter-18 Verse-38
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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