"गीता 18:61": अवतरणों में अंतर
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पूर्व [[श्लोक|श्लोकों]] में कर्म करने में मनुष्य को स्वभाव के अधीन बतलाया गया; इस पर यह शंका हो सकती है कि प्रकृति या स्वभाव जड है, वह किसी को अपने वश में कैसे कर सकता है ? इसलिये भगवान् कहते हैं- | |||
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हे < | हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! शरीर- रूप यन्त्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के [[हृदय]] में स्थित है ।।61।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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06:43, 7 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-61 / Gita Chapter-18 Verse-61
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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