"गीता 18:75": अवतरणों में अंतर
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श्री< | श्री [[व्यास|व्यासजी]]<ref>भगवान व्यास भगवान [[नारायण]] के ही कलावतार थे। उनके [[पिता]] का नाम [[पाराशर|पाराशर ऋषि]] तथा [[माता]] का नाम [[सत्यवती]] था।</ref> की कृपा से दिव्य दृष्टि पाकर मैंने इस परम गोपनीय योग के [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> के प्रति कहते हुए स्वयं योगेश्वर भगवान् [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> से प्रत्यक्ष सुना है ।।75।। | ||
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Having been blessed with the divine vision by the grace of Sri Vyasa, I heard this supremely esoteric gospel from the Lord of Yoga, Sri Krishna Himself, imparting it to Arjuna before my very eyes. (75) | Having been blessed with the divine vision by the grace of Sri Vyasa, I heard this supremely esoteric gospel from the Lord of Yoga, Sri Krishna Himself, imparting it to Arjuna before my very eyes. (75) | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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07:24, 7 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-75 / Gita Chapter-18 Verse-75
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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