"गीता 18:7": अवतरणों में अंतर

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'''प्रसंग-'''
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अब तीन श्लोकों में क्रम से तीन प्रकार के त्यागों के लक्षण बतलाते हुए पहले निकृष्ट कोटि के तामस त्याग के लक्षण बतलाते हैं-
अब तीन [[श्लोक|श्लोकों]] में क्रम से तीन प्रकार के त्यागों के लक्षण बतलाते हुए पहले निकृष्ट कोटि के तामस त्याग के लक्षण बतलाते हैं-
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'''नियतस्य तु संन्यास: कर्मणे नोपपद्यते ।'''<br />
'''नियतस्य तु सन्न्यास: कर्मणे नोपपद्यते ।'''<br />
'''मोहात्तस्य परित्यागस्तामस: परकीर्तित: ।।7।।'''
'''मोहात्तस्य परित्यागस्तामस: परकीर्तित: ।।7।।'''
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(निषिद्ध और काम्य कर्मों का तो स्वरूप से त्याग करना उचित ही है) परंतु नियत कर्म का स्वरूप से त्याग उचित नहीं है । इसलिये मोह के कारण उसका त्याग कर देना तामस त्याग कहा गया है ।।7।।  
(निषिद्ध और काम्य कर्मों का तो स्वरूप से त्याग करना उचित ही है) परंतु नियत कर्म का स्वरूप से त्याग उचित नहीं है। इसलिये मोह के कारण उसका त्याग कर देना तामस त्याग कहा गया है ।।7।।  


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तु = और (हे अर्जुन) ; नियतस्य = नियत ; कर्मण: = कर्म का ; संन्यास: = त्याग करना ; तस्य = असका ; परित्याग: = त्याग करना ; न उपपद्यते = योग्य नहीं है (इसलिये) ; मोहात् = मोह से ; तामस: = तामस त्याग ; परकिर्तित: = कहा गया है ;
तु = और (हे अर्जुन) ; नियतस्य = नियत ; कर्मण: = कर्म का ; सन्न्यास: = त्याग करना ; तस्य = असका ; परित्याग: = त्याग करना ; न उपपद्यते = योग्य नहीं है (इसलिये) ; मोहात् = मोह से ; तामस: = तामस त्याग ; परकिर्तित: = कहा गया है ;
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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13:53, 2 मई 2015 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-18 श्लोक-7 / Gita Chapter-18 Verse-7

प्रसंग-


अब तीन श्लोकों में क्रम से तीन प्रकार के त्यागों के लक्षण बतलाते हुए पहले निकृष्ट कोटि के तामस त्याग के लक्षण बतलाते हैं-


नियतस्य तु सन्न्यास: कर्मणे नोपपद्यते ।
मोहात्तस्य परित्यागस्तामस: परकीर्तित: ।।7।।



(निषिद्ध और काम्य कर्मों का तो स्वरूप से त्याग करना उचित ही है) परंतु नियत कर्म का स्वरूप से त्याग उचित नहीं है। इसलिये मोह के कारण उसका त्याग कर देना तामस त्याग कहा गया है ।।7।।

(Prohibited acts and those that are motivated by desire should no doubt be given up.) But it is not advisable to abandon a prescribed duty. Its abandonment through ignorance has been declared as Tamasika. (7)


तु = और (हे अर्जुन) ; नियतस्य = नियत ; कर्मण: = कर्म का ; सन्न्यास: = त्याग करना ; तस्य = असका ; परित्याग: = त्याग करना ; न उपपद्यते = योग्य नहीं है (इसलिये) ; मोहात् = मोह से ; तामस: = तामस त्याग ; परकिर्तित: = कहा गया है ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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