"गीता 18:18": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार | इस प्रकार सन्न्यास (ज्ञानयोग) का तत्त्व समझाने के लिये [[आत्मा]] के अकर्तापन का प्रतिपादन करके अब उसके अनुसार कर्म के अंग-प्रत्यंगों को भली-भाँति समझाने के लिये कर्म-प्रेरणा और कर्मसंग्रह का प्रतिपादन करते है- | ||
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परिज्ञाता = ज्ञाता ; ज्ञानम् = ज्ञान (और) ; ज्ञेयम् = ज्ञेय ; त्रिविधा = यह तीनों (तों) ; | परिज्ञाता = ज्ञाता ; ज्ञानम् = ज्ञान (और) ; ज्ञेयम् = ज्ञेय ; त्रिविधा = यह तीनों (तों) ; | ||
कर्माचोदना = कर्म के प्रेरक है | कर्माचोदना = कर्म के प्रेरक है अर्थात् इन तीनों के संयोग से तो कर्म में प्रवृत्त होने की इच्छा उत्पन्न होती है (और) ; कर्ता = कर्ता ; करणम् = करण (और) ; कर्म = क्रिया ; इति = यह ; त्रिविध: = तीनों ; कर्मसंग्रह: = कर्मके संग्रह हैं अर्थात् इन तीनों के संयोगसे कर्म बनता है ; | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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07:48, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-18 / Gita Chapter-18 Verse-18
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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