"गीता 18:2": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार < | इस प्रकार [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> के पूछने पर भगवान् अपना निश्चय प्रकट करने के पहले सन्न्यास और त्याग के विषय में दो [[श्लोक|श्लोकों]] द्वारा अन्य विद्धानों के भिन्न-भिन्न मत बतलाते हैं- | ||
'''श्रीभगवानुवाच-''' | '''श्रीभगवानुवाच-''' | ||
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<div align="center"> | <div align="center"> | ||
'''काम्यानां कर्मणां न्यासं | '''काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्न्यासं कवयो विदु: ।'''<br /> | ||
'''सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणा: ।।2।।''' | '''सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणा: ।।2।।''' | ||
</div> | </div> | ||
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'''श्रीभगवान् बोले-''' | '''श्रीभगवान् बोले-''' | ||
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कितने ही पण्डितजन तो काम्यकर्मों के त्याग को | कितने ही पण्डितजन तो काम्यकर्मों के त्याग को सन्न्यास समझते हैं तथा दूसरे विचार कुशल पुरुष सब कर्मों के फल के त्याग को त्याग कहते हैं ।।2।। | ||
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कवय: = पण्डितजन (तो) ; काम्यानाम् = काम्य ; कर्मणाम् = कर्मों के ; न्यासम् = त्याग को ; | कवय: = पण्डितजन (तो) ; काम्यानाम् = काम्य ; कर्मणाम् = कर्मों के ; न्यासम् = त्याग को ; सन्न्यासम् = सन्न्यास ; विदु: = जानते हैं ; (च) = और ; विचक्षणा: = विचारकुशल पुरुष ; सर्वकर्मफलत्यागम् = सब कर्मों के फलके त्याग को ; त्यागम् = त्याग ; प्राहु: = कहते हैं ; | ||
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13:53, 2 मई 2015 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-2 / Gita Chapter-18 Verse-2
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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