"गीता 18:44": अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार क्षत्रियों के स्वाभाविक कर्मों का वर्णन करके अब वैश्य और शूद्रों के स्वाभाविक कर्म बतलाते हैं- | इस प्रकार [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] के स्वाभाविक कर्मों का वर्णन करके अब [[वैश्य]] और [[शूद्र|शूद्रों]] के स्वाभाविक कर्म बतलाते हैं- | ||
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खेती, गोपालन और क्रय-विक्रय रूप सत्य व्यवहार- ये वैश्य के स्वाभाविक कर्म हैं | खेती, गोपालन और क्रय-विक्रय रूप सत्य व्यवहार- ये [[वैश्य]] के स्वाभाविक कर्म हैं तथा सब [[वर्ण व्यवस्था|वर्णों]] की सेवा करना [[शूद्र]] का भी स्वाभाविक कर्म है ।।44।। | ||
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06:15, 7 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-44 / Gita Chapter-18 Verse-44
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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