"गीता 18:5": अवतरणों में अंतर
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इस प्रकार त्याग का | इस प्रकार त्याग का तत्त्व सुनने के लिये [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> को सावधान करके अब भगवान् उस त्याग का स्वरूप बतलाने के लिये पहले दो [[श्लोक|श्लोकों]] में शास्त्रविहित शुभ कर्मों को करने के विषय में अपना निश्चय बतलाते हैं- | ||
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यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं हैं, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप- ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं ।।5।। | [[यज्ञ]], दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं हैं, बल्कि वह तो अवश्य कर्तव्य है, क्योंकि यज्ञ, दान और तप- ये तीनों ही कर्म बुद्धिमान पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं ।।5।। | ||
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13:36, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-5 / Gita Chapter-18 Verse-5
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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