"गीता 18:6": अवतरणों में अंतर
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इसलिये हे पार्थ<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।</ref> ! इन [[यज्ञ]], दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिये; यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है ।।6।। | इसलिये हे पार्थ<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! इन [[यज्ञ]], दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिये; यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है ।।6।। | ||
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13:41, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-6 / Gita Chapter-18 Verse-6
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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