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पूर्वश्लोक में जो बुद्धि और धृति के सात्त्विक, राजस और तामस तीन-तीन भेद क्रमश: बतलाने की प्रस्तावना की है, उसके अनुसार पहले सात्त्विक बुद्धि के लक्षण बतलाते हैं-
पूर्व [[श्लोक]] में जो बुद्धि और धृति के सात्त्विक, राजस और तामस तीन-तीन भेद क्रमश: बतलाने की प्रस्तावना की है, उसके अनुसार पहले सात्त्विक बुद्धि के लक्षण बतलाते हैं-
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हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">पार्थ</balloon> ! जो बुद्धि प्रवृति मार्ग और निवृति मार्ग को, कर्तव्य और अकर्तव्य को, भय और अभय को तथा बन्धन और मोक्ष को यथार्थ जानती है, वह बुद्धि सात्त्विकी है ।।30।।  
हे पार्थ<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।</ref> ! जो बुद्धि प्रवृति मार्ग और निवृति मार्ग को, कर्तव्य और अकर्तव्य को, भय और अभय को तथा बन्धन और मोक्ष को यथार्थ जानती है, वह बुद्धि सात्त्विकी है ।।30।।
 
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05:46, 7 जनवरी 2013 का अवतरण

गीता अध्याय-18 श्लोक-30 / Gita Chapter-18 Verse-30

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में जो बुद्धि और धृति के सात्त्विक, राजस और तामस तीन-तीन भेद क्रमश: बतलाने की प्रस्तावना की है, उसके अनुसार पहले सात्त्विक बुद्धि के लक्षण बतलाते हैं-


प्रवृतिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये ।
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धि: सा पार्थ सात्त्विकी ।।30।।



हे पार्थ[1] ! जो बुद्धि प्रवृति मार्ग और निवृति मार्ग को, कर्तव्य और अकर्तव्य को, भय और अभय को तथा बन्धन और मोक्ष को यथार्थ जानती है, वह बुद्धि सात्त्विकी है ।।30।।

The intellect which correctly determines the paths of activity and renunciation, what ought to be done and what should not be done, what is fear and what is fearlessness, and what is bondage and what is liberation, that intellect is Goodness (Sattvika). (30)


पार्थ = हे पार्थ ; प्रवृत्तिमृ = प्रवृत्तिमार्ग ; च = और ; कार्यकार्यें = कर्तव्य और अकर्तव्य को (एवं) ; भयाभये = भय और अभय को (तथा) ; बन्धम् = बन्धन ; च = और ; निवृत्तिम् = निवृत्तिमार्ग को ; च = तथा ; मोक्षम् = मोक्षको ; या = जो बुद्धि ; वेत्ति = तत्त्व से जानती है ; सा = वह ; बृद्धि: = बुद्धि (तो) ; सात्त्विकी = सात्त्विकी है;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

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