गीता 18:66

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गीता अध्याय-18 श्लोक-66 / Gita Chapter-18 Verse-66


सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।।66।।



सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर ।।66।।

Resigning all your duties to Me, the all-powerful and all-supporting Lord, take refuge' in Me alone. I shall absolve you of all sins, worry not.(66)


सर्वधर्मान् = सर्व धर्मो को अर्थात् संपूर्ण कर्मोंके आश्रय को ; परित्यज्य = त्यागकर ; एकम् = केवल एक ; माम् = मुझ सच्चिदानन्दघन वासुदेव परमात्मा की ही ; शरणम् = अनन्य शरणको ; व्रज = प्राप्त हो ; अहम् = मैं ; त्वा = तेरे को ; सर्वपापेभ्य: = संपूर्ण पापों से ; मोक्षयिष्यामि = मुक्त कर दूंगा ; मा शुच: = तूं शोक मत कर



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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