शूरवीरता, तेज, धैर्य, चतुरता और युद्ध में न भागना, दान देना और स्वामिभाव – ये सब के सब ही क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं ।।43।।
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Exhibition of valour, fearlessness, firmness, cleverness and steadiness in battle, bestowing gifts, and lordliness—all these constitute the natural duty of a Ksatriya. (43)
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