उस पर भक्ति के द्वारा वह मुझ परमात्मा को , मैं जो हूँ और जितना हूँ ठीक वैसा-का वैसा तत्व से जान लेता है; तथा उस भक्ति से मुझ को तत्व से जानकर तत्काल ही मुझमें प्रविष्ट हो जाता है ।।55।।
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Through that supreme devotion he comes to know Me in reality, what and how great I am; and thereby knowing Me in essence he forthwith enters into My being.(55)
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