गीता 18:75

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गीता अध्याय-18 श्लोक-75 / Gita Chapter-18 Verse-75


व्यासप्रसादाच्छुतवानेतद्गुह्रामहं परम् ।
योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयत: स्वयम् ।।75।।



श्री<balloon link="व्यास" title="भगवान व्यास भगवान नारायण के ही कलावतार थे। व्यास जी के पिता का नाम पाराशर ऋषि तथा माता का नाम सत्यवती था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">व्यास</balloon>जी की कृपा से दिव्य दृष्टि पाकर मैंने इस परम गोपनीय योग के <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के प्रति कहते हुए स्वयं योगेश्वर भगवान् <balloon link="कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">श्रीकृष्ण</balloon> से प्रत्यक्ष सुना है ।।75।।

Having been blessed with the divine vision by the grace of Sri Vyasa, I heard this supremely esoteric gospel from the Lord of Yoga, Sri Krishna Himself, imparting it to Arjuna before my very eyes. (75)


यव्यास प्रसादात् = श्रीव्यास जी की कृपा दिव्य दृष्टिद्वारा; अहम् = मैंने; एतत् = इस; परम = परम् रहस्ययुक्त; गुहृम् = गोपनीय; योगम् = योग को; साक्षात् = साक्षात्; कथयत: = कहते हुए; स्वयम् = स्वयम्; योगेश्वर; कृष्णात् = श्रीकृष्ण भगवान् से; श्रुतवान् = सुना है



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
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