गीता 18:75

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गीता अध्याय-18 श्लोक-75 / Gita Chapter-18 Verse-75


व्यासप्रसादाच्छुतवानेतद्गुह्रामहं परम् ।
योगं योगेश्वरात्कृष्णात्साक्षात्कथयत: स्वयम् ।।75।।



श्री व्यासजी[1] की कृपा से दिव्य दृष्टि पाकर मैंने इस परम गोपनीय योग के अर्जुन[2] के प्रति कहते हुए स्वयं योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण[3] से प्रत्यक्ष सुना है ।।75।।

Having been blessed with the divine vision by the grace of Sri Vyasa, I heard this supremely esoteric gospel from the Lord of Yoga, Sri Krishna Himself, imparting it to Arjuna before my very eyes. (75)


यव्यास प्रसादात् = श्रीव्यास जी की कृपा दिव्य दृष्टिद्वारा; अहम् = मैंने; एतत् = इस; परम = परम् रहस्ययुक्त; गुहृम् = गोपनीय; योगम् = योग को; साक्षात् = साक्षात्; कथयत: = कहते हुए; स्वयम् = स्वयम्; योगेश्वर; कृष्णात् = श्रीकृष्ण भगवान् से; श्रुतवान् = सुना है



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवान व्यास भगवान नारायण के ही कलावतार थे। उनके पिता का नाम पाराशर ऋषि तथा माता का नाम सत्यवती था।
  2. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  3. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।

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