अबिगत[1] गति[2] कछु कहति न आवै।
ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत[3] ही भावै॥[4]
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित[5] तोष[6] उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर[7] सो जाने जो पावै॥
रूप रैख गुन[8] जाति जुगति बिनु निरालंब[9] मन चकृत धावै।
सब बिधि अगम बिचारहिं, तातों सूर सगुन[10] लीला पद गावै॥